शाम ढलते ढलते लौटने लगते हैं पंछी अपने घोसलों की ओर ...धीरे धीरे उनकी चहचहाट बंद हो जाती हैं ,नींद उनके पंखो को विराम देती हैं पर तारों की झिलमिल के साथ ही बढ़ने लगती हैं हमारे घर आँगन में रहते नन्हे नन्हे पंछियों की चहचहाट,टिम टिम करते झिलमिलाते तारे उनके पंखो को एक नयी उर्जा एक नयी स्फूर्ति देते हैं ,कभी लोरी, कभी माँ का लाड़,पर निंदियाँ रानी उनकी आज्ञा की दासी ! भला उनकी मर्जी की बिना वह कैसे इन नन्हे मुन्नों की पलको को अपना आसरा बनाये???
कुछ शर्माती ,कुछ हिचकिचाती वही तो माँ के कानो में कह जाती हैं "कहानी ".और यही से शुरू होती हैं कहानियों की प्यारी ,अनोखी ,सुंदर दुनियाँ ..जहाँ घूमते छोटे छोटे बच्चे कभी माँ से कई सारे सवाल कर बैठते हैं ,फिर अचानक ही निंदियाँ रानी की गोद में सर रख इसी दुनियाँ में रात भर के लिए खो जाते हैं ...माँ लेती हैं एक आनंद ,सुख और ममता से भरा निश्वास ..
जब आरोही इस दुनियाँ में आई तो मैंने कई सारी कहानियों की किताबें लायी ,पर तब उसे लोरियां सुनना भाता था ,और अब जब वह कहानी सुनने की जिद करती हैं तो मेरे पास कोई कहानी नही होती ,कहीं से अचानक कोई तारा ,कोई पंछी ,कभी शेर ,कभी बिल्ली ,कभी छोटा भीम के लड्डू ,तो कभी कोई गीत नजरो के निचे से गुजर जाते हैं और ले लेते हैं कहानी का रूप ..अरु के साथ मैं भी उन्ही कहानियों के नगर में घुमती हूँ वहाँ रह रहे बन्दर ,भालू ,चिड़ियाँ ,चुन्नी गुड़ियाँ ,मन्नी मैना ,रोज़ी फूलो की रानी ,सा रे ग म गाती सारा .सबके सब अचानक ही मेरे दोस्त बन जाते हैं ,मैं अरु और हमारे सभी दोस्त साथ साथ खाना खाते हैं ,इनाम पाते हैं ,गलत लोगो को सबक सिखाते हैं ,माँ से अच्छी बातें सीखते हैं ,टीचर की डांट सुन थोडा घबरा जाते हैं और प्यार से कहते हैं सॉरी टीचर ...
सच मुझे ही नही पता कहानियाँ कब बन जाती हैं ???पर मेरी अरु बहुत हसंती हैं ..बहुत खुश होती हैं फिर चुपके से सो जाती हैं. ...
सोचा यही कहानियाँ सबके साथ बांटू ताकि आप सबकी आरोही भी यूँही हँसें ,मुस्कुराये,और चुपके से सो जाये ,तो मेरी ख़ुशी दुगुनी हो जाएगी ,इसलिए यह ब्लॉग "झिलमिल (अरु की कहानियाँ )"
पहली कहानी अगली पोस्ट में ...
बहुत प्यारी है अरु।
ReplyDeleteसुनाओ कहानियाँ। शायद हमारा भी मन बहल जाए....
Dhnywad dada
ReplyDeleteभई बच्चों की कहाणियां तो हमें भी अच्छी लगती है। अब जरूर पढ़ा करेंगे यहीं पर, इंतजार है, कहानियों का।
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